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Report of Training

Publish Date: 19-11-2014

तृतीय दिवस दिनाँक: 12.11.2014 की आख्या का प्रस्तुतीकरण

स्थल - सीमैट, सभागार

   श्रद्धेया विभागाध्यक्ष, सीमैट के सहकर्मी एवं मेरे सम्मानित साथियों,

                मैं अपनी आख्या का प्रस्तुतीकरण कबिवर दुष्यन्त की इन प्रेरणादायी पंक्तियों से करने की सदन से अनुमति चाहता हूँ-

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही

हो कहीं भी आग मगर आग जलनी चाहिए।।

                सीमैट इस सुसज्जित सभागार में प्रधानाध्यापकों के पाँच दिवसीय वित्तीय एवं कार्यालय प्रबन्धन प्रशिक्षण के तृतीय दिवस की आख्या सदन के पटल पर रखने का मुझे सुयश मिल रहा है। मैं गतानुसाविक का अनुगामी नहीं अपितु नवोन्मेषी हूँ। अतः लीक से हटकर आख्या प्रस्तुत करना मेरा मन्तव्य एवं ध्येय है। क्योंकि-

लीक-लीक गाड़ी चलै, लीकहिं चलै कपूत।

लीक छाडि़ तीनों चले, शायर, सिंह सपूत।।

                मेरी इस आख्या में नकारात्मक विचारों एवं तथ्यों के लिए लेशमात्र भी जगह नहीं है। सकारात्मक सोच प्रगति के नये सोपान एवं प्रतिमान निर्मित करते हैं। प्रशिक्षण के प्रथम सत्र का श्री गणेश ईश वन्दना के समवेत स्वर -”शक्ति हमें देना दाता“ से हुआ। तत्पश्चात् द्वितीय दिवस की आख्या सम्मानित साथी श्री प्रताप सिंह बिष्ट द्वारा प्रस्तुत की गई। साफ सुथरी साहित्यिक भाषा में प्रस्तुत आख्या नये अन्दाज और नए तेवर से लवरेज थी। वास्तविक अर्थों में प्रशंसा की हकदार भी।

                कार्यालय प्रबन्धन पर हमारे बीच प्रथम विद्वान वक्ता ‘डाॅ0 राजेन्द्र कुमार त्रिवेदी‘ प्रधानाध्यापक-ग्राफिक एरा देहरादून का परिचय डाॅ0 एम.एम. उनियाल जी ने कराया। एक चीनी कहानी के माध्यम से प्रशिक्षक और प्रशिक्षुओं के मध्य अन्तर को उन्होंने आते ही पाट दिया। ”कप भरा हुआ है“ का सकारात्मक दर्शन आशावादिता का संचार कर दिया। आत्मविश्वास, अनुशासन, कार्यात्मक ज्ञान, अनुभव व व्यवहार के साथ संवाद प्रेषणीयता की कला कार्यालय प्रबन्धन के औजार हैं। उन्होंने एक त्रि-सूत्रीय मंत्र दिया मैं कौन हूँ? मेरे पास क्या है? और मैं क्या कर सकता हूँ? हमारी वही सोच हमारा पथ प्रशस्त करती है। हमें भावनाओं से ऊपर उठकर कार्यालयी कार्यों को संपादित व निष्पादित करना चाहिए। हम कुल्सित अभिवृत्ति के साथ अच्छे दिवस की कामना नहीं कर सकते। प्रशिक्षण का व्यावहारिक पहलू पुल निर्माण की प्रक्रिया थी। प्रशिक्षुओं को पाँच समूहों में विभाजित करके एक निश्चित अवधि के अन्दर कार्य को पूर्ण करना था। समूह नम्बर पाँच ने सभी मानकों को पूरा करते हुए काम को अन्जाम दिया। पत्रावलियों के रख-रखाव विषयक महत्वपूर्ण जानकारी विद्वान वक्ता द्वारा दी गई। इस दौरान जिज्ञासु प्रशिक्षुओं के टोका-टाकी भी की किन्तु वे अविचलित रहे।

श्री डाॅ0 वी0एस0 रावत ने वर्ग पहेली के माध्यम से प्रथम सत्र को विचारोत्तेजक बना दिया। समाधान भी उन्होंने ही दिया।

भोजनोपरान्त का सत्र विभागाध्यक्ष डाॅ0 हेमलता भट्ट की उपस्थिति में एक मिनट के ताली वादन से हुआ। प्रशिक्षुओं की तन्द्रा टूट गई थी और आलस्य छू-मंतर। उनकी सहज मुस्कान नई ऊर्जा का संचार करने में कामयाब रही। विषय और विद्वान बदलते हैं। अब हमारे बीच ‘डाॅ0 पंकज शुक्ला‘ वित्ताधिकारी एन.सी.सी. महा निदेशालय उपस्थित थे प्रशिक्षुओं से परिचयोपरान्त यात्रा भत्ता देयक नियम एवं कालातीत देयकों का भुगतान विषय पर उनका व्याख्यान ज्ञानवर्द्धक, व्यावहारिक एवं उपयोगी रहा। यात्रा भत्ता तथा कालातीत देयकों पर सविस्तार व्याख्या सार्थक रही।

द्वितीय सत्र में ही ‘श्री सुनील कुमार रतूड़ी, वित्ताधिकारी ने विषय का प्रवर्तन एवं परिवर्द्धन करते हुए अधिप्राप्ति नियमावली 2008 पर अभी परिसंवाद शुरू ही किए थे कि हमारे बीच निदेशक- अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण श्रीमती सीमा जौनसारी का आगमन ताजा हवा के झोकों जैसी ताजगी एवं खुशबू लेकर हुआ। उनकी गरिमामय उपस्थिति सत्रान्त तक रही। उनकी अपील विद्यालयों में छात्र संख्या अभिवृद्धि हृदयग्राही रही। इस दौरान तीन वीडियों क्लिप- टीम वर्क, बाड़ी लैंग्वेज तथा टेबिल मैनर प्रदर्शित किए गए। उनके प्रदर्शन के अन्तर्निहित उद्देश्य स्पष्ट थे। हमारा आचार-व्यवाहार, हमारा व्यक्तित्व हमारे कार्यों का आइना होता है। हम समाज के प्रतिदर्श हैं और समाज हमारा प्रतिरूप। थोड़ी देर के लिए ही सही श्रीमती कंचन देवराड़ी, उप निदेशक भी मंच पर समासीन रही।

काल चक्र गतिमान रहा। अनभक अविराम गति से चलता हुआ सत्रान्त के अवझान बिन्दु तक आ गया। एक नई ऊर्जा, आशा और विश्वास के साथ हम कल मिलेंगे इस वायदे के साथ ..............

सेनानी करो प्रयाण अभय

भावी इतिहास तुम्हारा है।

ए नसत अमाँ के बुझते हैं

सारा आकाश तुम्हारा है।।

और अन्त में आख्या प्रस्तुतीकरण में अपने सभी श्रीधरणीधर अवस्थी प्रधानाचार्य के प्रति सहयोग के लिए आभार व्यक्त करते हुए अपनी आख्या को विराम देता हूँ।   

धन्यवाद!

साभार समर्पित।

 

प्रस्तोना

 

रमेश चन्द्र द्विवेदी

प्रधानाध्यापक

रा.उ.मा.वि. सुरंग, नैनीताल

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